Prabhat Times
चंडीगढ़। (captain amrinder singh party punjab lok congress party symbol) पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ‘हॉकी स्टिक और बॉल’ लेकर चुनाव मैदान में उतरेंगे। कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा बनाई गई पंजाब लोक कांग्रेस को इलेक्शन कमिशन द्वारा चुनाव चिन्ह हॉकी स्टिक और बॉल दिया गया है। ये जानकारी कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से शेयर की गई है। साथ ही हैश टैग के साथ लिखा है कि बस हुण गोल करना बाकी है।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) ने हाल ही में अपनी अलग पार्टी बनाई थी, जिसका नाम है पंजाब लोक कांग्रेस (Punjab Lok Congress). अब इस पार्टी को चुनाव आयोग (Election Commission) की ओर से चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया है. पार्टी को हॉकी स्टिक और हॉकी बॉल का चुनाव चिह्न मिला है. कैप्टन अमरिंदर सिंह पहले ही ऐलान कर चुके है कि उनकी पार्टी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी।
अमरिंदर सिंह की पार्टी को चुनाव चिह्न आवंटित होने के बाद लोग जानना चाहते हैं कि आखिर किसी भी पार्टी के चुनाव चिह्न का फैसला कैसे होता है. चुनाव आयोग किस आधार पर यह फैसला करता है कि किस पार्टी को कौनसा चुनाव चिह्न दिया जाना चाहिए. ऐसे में जानते हैं कि आखिर चुनाव चिह्न कैसे आंवटित किया जाता है और इसके नियम क्या हैं. साथ ही जानते हैं चुनाव चिह्न से जुड़ी कुछ खास बातें, जो काफी दिलचस्प है…

कितने तरह के होते हैं चुनाव चिह्न?

किसी भी पार्टी को चुनाव चिह्न मिलने की प्रक्रिया जानने से जानते हैं कि चुनाव चिह्न कितने तरह के होते हैं. दरअसल, चुनाव चिह्न कई आधार पर बांटकर रखता है और उन आधार पर चुनाव से पहले भी उम्मीदवार को चुनाव चिह्न दिए जाते हैं. इसमें भी रिजर्व्ड और फ्री चुनाव चिह्न होते हैं, इसमें रिजर्व्ड चिह्न तो पार्टी को पहले ही आवंटित हो चुके होते हैं. इन चुनाव चिह्न के लिए हर पैरा के हिसाब से नियम तय किए गए हैं.
  • – एक चुनाव चिह्न तो रिकॉग्नाइज्ड पार्टियों के लिए आरक्षित हैं, जिन पर उस पार्टी के लिए कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकता है. यह सभी नेशनल पार्टियों के चुनाव चिह्न हैं.
  • – पैरा 10 के अनुसार, अन-रिकॉग्नाइज्ड लेकिन राज्य में रिकॉग्नाइज्ड पार्टी के चुनाव चिह्न होते हैं. यह क्षेत्रीय पार्टियों के होते हैं. बता दें इसमें फ्री और रिजर्व्ड दोनों सिंबल है.
  • – पैरा 10ए के अनुसार, अन-रिकॉग्नाइज्ड लेकिन रिकॉग्नाइज्ड पार्टी (जिन्हें 6 साल से कम हुए हैं) के चुनाव चिह्न होते हैं.
  • – पैरा 10 बी के अनुसार, रजिस्टर्ड और अन-रिकॉग्नाइज्ड पार्टी के चुनाव चिह्न होते हैं.
  • – निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए चुनाव चिह्न होते हैं, जो पार्टी चिन्हों से अलग होते हैं और चुनाव से पहले ही आवंटित किए जाते हैं.
बता दें कि रिकॉक्नाइड पार्टियों के चुनाव चिह्न के अलावा अन्य चिह्नों को चुनाव आयोग अलग-अलग परिस्थितियों में किसी दूसरे प्रत्याक्षी को आवंटित कर सकते हैं. लेकिन, पार्टी के लिए आरक्षित चुनाव चिह्न किसी दूसरी पार्टी को नहीं दी जाती है. जैसे मान लीजिए उत्तर प्रदेश की किसी पार्टी का चुनाव चिह्न गुब्बारा है तो राजस्थान में गुब्बारा चुनाव चिह्न किसी निर्दलीय का हो सकता है, लेकिन हाथ, कमल आदि नहीं हो सकता है चाहे वहां से वो पार्टी चुनाव ना भी लड़ रही हो.

पार्टियों को कैसे मिलता है चुनाव चिह्न?

पार्टी का चुनाव चिह्न लेने के लिए पहले तो पार्टी का रजिस्ट्रेशन करना होता है. इस रजिस्ट्रेशन के बाद चुनाव चिह्न की प्रक्रिया शुरू होती है. चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, पार्टी को 10 चुनाव चिह्नों की जानकारी चुनाव आयोग को देती है, जिसमें से उन्हें एक चिह्न चाहिए होता है. इसमें तीन प्राथमिकता वाले सिंबल होते हैं, जिन्हें वरीयता के क्रम में लिखना होता है. इसके बाद चुनाव आयोग पहले से लोगों को मिले सिंबल और सिंबल के प्रकार के आधार पर इस पर फैसला लेता है.
इसके लिए स्पष्ट डिजाइन आदि भी देनी होती है. शर्त ये होती है कि यह किसी अन्य पार्टी के सिंबल से मिलता जुलता नहीं होना चाहिए, किसी धर्म आदि का चित्रण ना करता हो, कोई जानवर या पक्षी ना हो. इसके अलावा विधानसभा सत्र की समाप्ति को लेकर भी इसे तय किया जाता है. इसके बाद चुनाव आयोग उनके पसंद के चिह्नों में से एक पर फैसला लेता है.

पार्टी का विभाजन हुआ हो तो क्या होगा?

पार्टी के बंटवारे के लिए सिंबल ऑर्डर 1968 के पैरा 15 के मुताबिक, चुनाव आयोग अपनी संतुष्टि के आधार पर सिंबल और पार्टी के नाम का फैसला करता है. ये अलग हुए गुटों की स्थिति, उनकी ताकत, विधायकों सांसदों के नंबर्स को ध्यान में रखते हुए देता है. इस दौरान आयोग सभी उपलब्ध साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकता है. वो किसी एक समूह या दोनों में से किसी को भी पुराना सिंबल नहीं देने का फैसला कर सकता है. आयोग का निर्णय सभी वर्गों और समूहों पर बाध्यकारी होता है.

कितनी तरह की होती है पार्टी?

भारत में तीन तरह की राजनैतिक पार्टियां हैं, जिसमें राष्ट्रीय पार्टी, राज्य स्तरीय पार्टी और गैर मान्यता प्राप्त (लेकिन चुनाव आयोग के पास पंजीकृत पार्टी) शामिल है. भारत में अभी तक राष्ट्रीय पार्टी सिर्फ 6 ही हैं और कई राज्य स्तरीय पार्टियां और गैर मान्यता प्राप्त पार्टियां हैं. बता दें कि चुनाव में मिलने वाले वोट और सीटों की संख्या के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय या राज्य की पार्टी का दर्जा मिलता है.

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