Prabhat Times

नई दिल्ली। (demonetisation completed 5 years) 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे पीएम नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोट को रात 12 बजे से बंद कर दिया था, ये सीधे अटैक था उस कालेधन पर जो बड़ी मात्रा में बाज़ार में मौजूद तो ज़रूर था, लेकिन बैंकिंग सिस्टम से काफ़ी दूर था. आज हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि सरकार के इतने बड़े फैसले से क्या भारत की अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौटी या अभी भी लंबा समय लगेगा. साथ में क्या 2024-25 तक सरकार 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी को हासिल कर पाएगी या नहीं और क्या नोटबंदी का मक़सद जिसमें कालेधन को खत्म करना था वो पूरा हुआ या नहीं.

सबसे पहले जानिए आखिर नोटबंदी का क्या था मक़सद?

  • नोटबंदी का बड़ा मक़सद देश में कालेधन को देश से खत्म करना
  • कालेधन के साथ समानांतर अर्थवयवस्था का खात्मा
  • देश में कालेधन का इस्तेमाल आतंकवाद में बहुत हुआ उसे भी ख़त्म करना एक बड़ा मक़सद रहा
  • इसके साथ देश को कैशलेस अर्थवयवस्था की तरफ ले जाना भी एक बड़ा मक़सद था
  • नकली जाली नोटों को अर्थवयवस्था को खत्म करना ऐसा बड़ा प्लान था नोटबंदी के पीछे
  • भारत में उस समय कितना कैश था और कितना सिस्टम में वापस आया
केंद्र सरकार के इस फैसले पर दुनियाभर में चर्चा रही. दुनिया ने इस फैसले को कुछ जगहों पर बेहतर माना गया तो कुछ जगहों पर इसकी आलोचना भी हुई. नोटबंदी के ठीक पहले देश में लोगों के पास 17.74 लाख करोड़ रुपये की करंसी मौजूद थी, जिसमें 500 रुपये के नोट और 1000 रुपये के नोट की रक़म 15.41 लाख करोड़ थी. इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये बैंकों में जमा कर दिए गए यानी अर्थवयवस्था में वापस आ गए यानी 10720 करोड़ रुपये वापस नहीं आए, जिसे कालाधन माना गया यानी ज़्यादातर रकम जिसे सफेद धन कहा जा सकता है वो सिस्टम में वापस आ चुका था, जबकि दावा किया गया था कि 4 लाख करोड़ कालाधन सिस्टम में मौजूद है, यहां आंकलन गलत साबित हुआ.

5 साल बाद क्या है हालात

नोटबंदी के 5 साल बाद अब सिस्टम में करीब 28.38 लाख करोड़ रुपये मौजूद हैं, इसमें लोगों के पास 10 लाख करोड़ से ज़्यादा रक़म कैश फ्लो है, जिससे तय होता है कि लोग आज भी नगदी का इस्तेमाल काफ़ी ज़्यादा कर रहे हैं.

नोटबंदी का प्रभाव कम हुआ लेकिन ख़त्म नहीं हुआ

नोटबंदी का असर फैक्ट्रियों पर और रोज़गार पर कितना पड़ा था और अब क्या हालात हैं इसे समझने के लिए न्यूज़ नेशन संवाददाता सैय्यद आमिर हुसैन ने दिल्ली की एक टॉय फेक्ट्री में जाकर समझा जहां पता चला कि मैन पावर 5 साल में आधी हो चुकी है जहां पहले 60-70 कर्मचारी काम करते थे आज वहां सिर्फ 30-35 कर्मचारी रह गए हैं, जहां 5 साल पहले एक कर्मचारी की कमाई 30-35 हज़ार थी आज 20-25 हज़ार रुपये हैं.

कैशलेस हुआ भारत

लोग आज डिजिटल मनी का इस्तेमाल भरपूर कर रहे हैं. कुछ सालों में 400-500 फ़ीसदी कैशलेस में इज़ाफ़ा हुआ है.

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