Prabhat Times

प्रीत सूजी

जालंधर। देश विदेश में कड़ी प्रतिस्पर्धा को देखते हुए सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति 2020 (Education Policy 2020) का ऐलान किया जा चुका है। नई नीति इस साल लागू भी हो जाएगी। नई शिक्षा नीति में बहुत बड़े बदलाव किए गए हैं। इसका कारण यही है कि छात्रो को ऐसी शिक्षा दी जाएगी कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हो सकें। लेकिन पंजाब के शिक्षा विभाग का बाबा आलम ही न्यारा है।
एक तरफ तेजी से कड़ी होती जा रही प्रतिस्पर्धा के लिए छात्रों को मेहनत करनी पड़ रही है, लेकिन इसके विपरीत छात्रों के ज़रिए देश के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए काम कर रहा शिक्षा विभाग ऐसे आदेश जारी कर देता है, जिससे छात्रों के साथ-साथ स्कूल प्रबंधन के लिए भी दुविधा, असमंजस की स्थिति बन जाती है। ऐसे ही आदेश एक बार फिर स्कूलों, छात्रों व अभिभावकों में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
पंजाब के शिक्षा विभाग द्वारा आदेश दिए गए हैं कि राज्य के सभी शिक्षा बोर्ड, सी.बी.एस.ई. तथा आई.सी.एस.ई. से संबंधित प्राईवेट स्कूल प्रबंधन छात्रों को सिर्फ एन.सी.ई.आर.टी., सी.आई.एस.सी.ई. द्वारा प्रकाशित किताबें ही पढ़ाई जाएं।
इसके पीछे शिक्षा विभाग ने तर्क दिया कि देखने में आया है कि सभी स्कूलों द्वारा प्राईवेट पब्लिशर की किताबें छात्रों को लगाई जाती है जो कि मंहगी होने के कारण इसका बौझ छात्रों के अभिभावकों पर पड़ता है। जिस कारण छात्रों और अभिभावकों में खासा रोष पाया जाता है।
शिक्षा विभाग द्वारा ये तर्क देते हुए निर्देश दिए हैं की सिर्फ एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा प्रकाशित किताबें ही लगाई जाएं। ये निर्देश देते हुए शिक्षा विभाग ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगर स्कूल प्रबंधन द्वारा ये आदेश नहीं माने जाते तो विभाग की तरफ से स्कूल की एन.ओ.सी. रद्द कर दी जाएगी।

इस दुविधा में है स्कूल प्रबंधन

शिक्षा विभाग द्वारा तो ये सख्त आदेश जारी कर दिए गए, लेकिन इन आदेशों को लेकर अब स्कूल प्रबंधन में भी दुविधा और असमंजस पाया जा रहा है। आखिर स्कूल प्रबंधन इन आदेशों को लेकर दुविधा में क्यों हैं, इसकी पड़ताल की गई। दुविधा को लेकर जो तथ्य या तर्क सामने आ रहे हैं, वाकई में हैरानीजनक हैं।
शिक्षा विभाग ने आदेश दे दिए हैं कि एन.सी.ई.आर.टी. की बुक्स ही पढ़ाई जाएं। लेकिन पड़ताल में सामने आया है कि एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा प्रकाशित विभिन्न सब्जैक्ट की अधिकांश बुक्स आऊटडेटिड हैं। कई सब्जैक्ट की बुक्स साल 2006, 2007 सालों में पहला एडीशन पब्लिश किया गया। इसके पश्चात ये बुक्स हर साल अब तक सिर्फ रि-प्रिंट ही हुए हैं।

2021 में कैसे पढ़ाएं 2006 में सैट किया गया सिलेब्स

इस मामले में एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बातचीत करते हुए कहा कि इसका अर्थ ये है कि एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा पब्लिश की गई ये बुक्स का सिलेबस, पैटर्न 2006 से पहले सैट हुआ और पहला एडीशन 2006 मे पब्लिश हुआ। इसके पश्चात इसके सिलेब्स, पैटर्न में कोई बदलाव नहीं हुआ। विभिन्न सब्जैक्ट की बुक्स को सिर्फ रि-प्रिंट ही किया गया।
शिक्षकों का मानना है कि साल 2006 से लेकर अब 2021 तक 15 साल बीत चुके हैं। 15 साल में शिक्षा के स्तर में भी बहुत बड़ा बदलाव हो चुका है। प्रतिस्पर्धा कड़ी हो चुकी है। छात्रों को हर फील्ड में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में छात्रों को 2006 में सैट किए गए पैटर्न या सिलेब्स की बुक्स कैसी पढ़ाई जा सकती है? अब छात्रों को रूटीन बुक्स के अतिरिक्त प्रतिस्पर्धा के लिए रेफरेंस बुक्स भी पढ़नी पड़ती हैं।

अदालत में जा चुका है ये मसला

सूत्रों ने बताया कि ये मसला अदालत में भी जा चुका है। क्योंकि करीब 15 साल पुराने पैटर्न पर सैट की गई बुक्स में आज के मुताबिक कंटैंट भी पूरा नहीं होता। वैसे भी अब सरकार द्वारा एजूकेशन पॉलिसी में बड़ा बदलाव किया जा चुका है। ये भी तर्क दिया जा चुका है कि स्कूलों द्वारा हर साल दिया जाने वाला एन.सी.ई.आर.टी. बुक्स का आर्डर भी पूरा नहीं हो पाता।

क्या करें क्या न करें स्कूल प्रबंधन

सरकार और स्कूल प्रबंधन के मौजूदा हालात से दुविधा की स्थिति बनी हुई है। अगर स्कूल प्रबंधन एन.ओ.सी. रद्द होने के डर से विभाग के निर्देश मानते हैं तो देश का भविष्य यानिकि छात्र मौजूदा समय में चल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा से पिछड़ सकते हैं। स्कूल प्रबंधकों की मांग है कि इस दुविधा को दूर करने के लिए समाधान निकाला जाए, ताकि विभागीय आदेशों का भी पालन हो और छात्र भी कड़ी प्रतिस्पर्धा में खुद को साबित कर पाएं।

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