Prabhat Times
नई दिल्‍ली। केंद्र सरकार ने बैंक उपभोक्‍ताओं की मुश्किलों को कम करने के लिए एक संशोधन विधेयक संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में पेश कर दिया है।
वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद के निचले सदन में कहा कि केंद्र सरकार बैंकिंग रेग्‍युलेशन एक्‍ट, 1949 (Banking Regulation Act, 1949) में संशोधन कर बैंक उपभोक्‍ताओं के हितों की रक्षा सुनिश्चित करना चाहती है।

328 अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों की कुल एनपीए 15 फीसदी से ज्‍यादा

वित्‍त मंत्री सीतारमण ने कहा कि जब भी कोई बैंक किसी भी तरह की मुश्किल में पड़ता है तो उसमें जमा लोगों के कड़ी मेहनत से कमाए पैसे संकट में फंस जाते हैं।
उन्‍होंने कहा कि देश के 227 अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों (Urban Co-Operative Banks) की माली हालत बेहद खराब है।
इसके अलावा 105 को-ऑपरेटिव बैंक ऐसे हैं, जिनके पास जरूरी न्‍यूनतम नियामकीय पूंजी (Minimum Regulatory Capital) तक नहीं है।
वहीं, 47 को-ऑपरेटिव बैंकों की नेटवर्थ निगेटिव (Negative Net Worth) है। वहीं, 328 अर्बन को-ऑपरेटिव बैंकों की कुल नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (Gross NPA) 15 फीसदी से ज्‍यादा हैं।

सरकारी बैंकों को राहत के लिए 20 हजार करोड़ रुपये देगी सरकार

निर्मला सीतारमण ने संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन सोमवार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) को रीकैपिटलाइजेशन बॉन्ड (Recapitalisation bonds) के जरिये 20 हजार करोड़ रुपये देने के लिए संसद की मंजूरी मांगी थी।
सरकार का कहना है कि उसके इस कदम से सरकारी बैंक को बड़ी राहत मिलेगी। वित्त मंत्री ने कहा कि कोरोना संकट के बीच कर्जदारों से पैसे वापस नहीं मिलने के कारण सरकारी बैंक दबाव में हैं।
उनका नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) बढ़ रहा है। सरकार इन बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराकर नकदी संकट से निकल पाएगी।

बैंकों के रीकैपिटलाइजेशन प्‍लान से नहीं बढ़ेगा राजकोषीय घाटा

लोकसभा में अनुदान की अनुपूरक मांगों (Supplementary Demand for Grants) को रखते हुए वित्‍त मंत्री सीतारमण ने कहा कि इससे देश का राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) भी नहीं बढ़ेगा।
उन्‍होंने कहा था कि बढ़ते एनपीए के कारण संकट में आए सरकारी बैंकों को राहत के लिए ये कदम उठाया जा रहा है।
इससे पहले जुलाई में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि सरकार को सरकारी और प्राइवेट बैंकों के लिए एक रीकैपिटलाइजेशन प्लान लेकर आना चाहिए, ताकि ये बैंक बढ़ते एनपीए के दबाव को झेल पाएं।