Prabhat Times

नई दिल्ली: LIC और एक नॉन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को छोड़कर बाकी सभी इंश्योरेंस कंपनियों में सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी किस्तों में बेच सकती है। इधर सरकार बैंको के प्राइवेटाइजेशन का भी प्लान कर रही है। इस पर PMO, वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के बीच सहमति बनी है, साथ ही कैबिनेट ड्रॉफ्ट नोट भी तैयार हो चुका है।

इस प्रस्ताव के मुताबिक, LIC और एक Non Life Insurace कंपनी सरकार अपने पास रखेगी। बता दें कि अभी कुल 8 सरकारी इंश्योरेंस कंपनियां हैं। LIC के अलावा 6 जनरल इंश्योरेंस और एक National Reinsurer कंपनी है।

देश के बैंकिंग सिस्टम और आम लोगों के लिए यह काफी अहम है। केंद्र सरकार जल्द ही देश में बैंकों की संख्या को घटाने जा रही है। सरकार की ओर से इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है।

रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दिनों में देश में 12 की जगह सिर्फ 5 ही सरकारी बैंक अस्तित्व में होंगे। फर्स्ट फेज में बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब एंड सिंध बैंक में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की तैयारी की जा रही है।

सरकार तैयार कर रही है प्रपोजल

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार के अनुसार देश में सिर्फ चार से पांच बैंक सरकारी बैंक काफी हैं। जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार प्राइवेटाइजेशन को लेकर एक नया प्रपोजल लेकर आने वाली है।

जिसमें बैंकों की संख्या को कम करने का भी प्रपोजल होगा। इस पूरे प्रपोजल को पहले केंद्रीय मंत्रीमंडल के सामने रखा जाएगा। वैसे इस मामले में फाइनेंस मिनिस्ट्री की ओर से किसी तरह का कॉमेंट नहीं आया है।

इसलिए सरकार चाहती है बैंकों प्राइवेटाइजेशन

सूत्रों के हवाले के अनुसार कोरोना वायरस की वजह से फाइनेंशियर सिस्टम काफी सुस्त है। जिसकी वजह से देश और सरकार दोनों को फंड की कमी से जूझना पड़ रहा है। जिसकी वजह से सरकार नॉन कोर कंपनी और सेक्टर की परिसंपत्तियों को बेचकर फंड एकत्र करने की योजना बना रही है।

वैसे देश की कई सरकारी कमेटियों और रिजर्व बैंक भी कह चुका है कि देश में पांच से ज्यादा बैंकों की जरुरत नहीं है। इसके विपरीत सरकार कह चुकी है कि सरकारी बैंकों में और कोई विलय नहीं देखने को मिलेगा। यानी बैंकों के प्राइवेटाइजेशलन के अलावा सरकार के पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है।

सरकार की ओर से किया गया था ऐलान

वैसे सरकार की ओर से पिछले साल ही देश के 10 सरकारी बैंकों का विलस कर 10 बैंकों में परिवर्तित करने का ऐलान किया था। ताज्जुब की बात तो ये है कि बैंकों का प्राइवेटाइजेशन उस समय सोचा जा रहा है जब कोरोना वायरस महामारी के कारण बैंकों के एनपीए बढऩे की संभावना है।

मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि इस वित्त वर्ष में बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का कदम नहीं उठाया जाएगा, क्योंकि मौजूदा समय में कोरोना वायरस की वजह से इकोनॉमी में ठहराव देखने को मिल रहा है। जिसकी वजह से एनपीए दोगुना होने के आसार हैं।