Prabhat Times
चंडीगढ़। करीब साढ़े चार साल पुराने बेअदबी मामलों (Sacrilege Cases) में आज पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) का बड़ा फैसला आया है। अदालत ने सी.बी.आई. को निर्देश दिए हैं कि बेअदबी मामलों से संबंधित केस डायरियां और दस्तावेज एक महीने के भीतर पंजाब पुलिस को सौंपे जाएं।
इस मुद्दे पर हाई कोर्ट के आदेशों को राज्य सरकार के रूख की हिमायत करार देते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि सी.बी.आई. अदालतों की हिदायतों पर गौर करे और केस से सम्बन्धित फाइलें राज्य को सौंप दे जिससे इन जुर्मों के गुनाहगारों को सजा दिलाई जा सके।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार पिछले दो सालों से अधिक समय से सी.बी.आई. की मनमानियों के विरुद्ध लड़ रही है परन्तु केंद्रीय एजेंसी इस समय के दौरान अदालतों की तरफ से जारी किये विभिन्न आदेशों और हुक्मों पर अमल करने में नाकाम रही है।
इन मामलों को कानूनी निष्कर्ष पर ले जाने के लिए अपनी सरकार की वचनबद्धता को दोहराते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्रीय एजेंसी को अदालतों के फ़ैसले का सम्मान करना चाहिए और अपने राजनैतिक अकाओं के इशारों पर अदालतों को धोखा देना बंद करे।
हाई कोर्ट के यह हुक्म साल 2015 में फरीदकोट में घटी बेअदबी की घटनाओं के एक अपराधी सुखजिन्दर सिंह उर्फ सन्नी की तरफ से दी दलील के दौरान दिए। सुखजिन्दर सिंह ने इस पक्ष को आधार बनाते हुए पंजाब पुलिस की एस.आई.टी. की तरफ से की जा रही जांच को चुनौती दी थी कि यह जांच सी.बी.आई. के अधिकार में है।
हाई कोर्ट ने सुखजिन्दर की दलील को ख़ारिज कर दिया और सी.बी.आई. को बेअदबी के मामलों से सम्बन्धित सभी दस्तावेज़ और सामग्री पंजाब पुलिस के हवाले करने के लिए कहा।
अदालत ने पंजाब पुलिस को भी आदेश दिए कि सी.बी.आई. की तरफ से सौंपी गई सामग्री को जाँचा जाये और मामले की सुनवाई कर रही अदालत के विचारने के लिए केस में पूरक चालान भी पेश किया जाये। हाई कोर्ट के जजों ने आगे कहा कि निचली अदालत यदि ज़रूरत समझे, तो अपराधी को नोटिस भेज सकती है।
जि़क्रयोग्य है कि राज्य सरकार द्वारा साल 2018 में केंद्रीय एजेंसी से जांच कराए जाने संबंधी अपनी सहमति वापस लेने के बाद से ही सी.बी.आई. द्वारा एस.आई.टी. की जांच में रुकावटें पैदा की जा रही हैं।
सी.बी.आई इस केस की फाइलें वापस राज्य को सौंपने से लगातार इन्कार कर रही है और सीबीआई ने क्लोजऱ रिपोर्ट दायर करने के बाद सितम्बर, 2019 विशेष जांच टीम की जांच में रुकावट डालने के लिए एक नयी जांच टीम का गठन किया।
बता दें कि जांच में कोई प्रगति न होने के कारण विधानसभा में सीबीआई केस की जांच सम्बन्धी सहमति वापस लेने का प्रस्ताव पारित करने के उपरांत इस विशेष जांच टीम का गठन सितम्बर, 2018 में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की तरफ से किया गया था।
इस फ़ैसले को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और 25 जनवरी, 2019 को दिए फ़ैसले से इसको बरकरार रखा गया। इसके बावजूद, सीबीआई ने बेअदबी मामलों सम्बन्धी केस डायरियाँ और दस्तावेज़ पंजाब पुलिस को नहीं सौंपे।
इसकी बजाय सीबीआई ने जुलाई, 2019 में सीबीआई कोर्ट में क्लोजऱ रिपोर्ट दायर की। इसके उपरांत सीबीआई ने सीबीआई कोर्ट को क्लोजऱ रिपोर्ट रद्द करने सम्बन्धी अनुरोध किया और इस केस की आगे की जांच सम्बन्धी आज्ञा की माँग की।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की तरफ से 2019 में दिए गए फ़ैसले को चुनौती देने वाली सी.बी.आई. की अपील सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी, 2020 में ख़ारिज कर दी थी। अपील को ख़ारिज करने के बाद भी सीबीआई ने इस केस से सम्बन्धित दस्तावेज़ पंजाब पुलिस को नहीं सौंपे थे।
पंजाब पुलिस की तरफ से बेअदबी मामलों की स्वतंत्र तौर पर पड़ताल के लिए एक विशेष जांच टीम (एस.आई.टी.) बनाई गई। इस विशेष जांच टीम ने जुलाई, 2020 में फरीदकोट की निचली अदालत में एक चार्जशीट दाखि़ल की, जिसको सुखजिन्दर सिंह ने चुनौती दी।
फरीदकोट के गाँव बुर्ज जवाहर सिंह वाला के गुरुद्वारा साहिब में से श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पवित्र स्वरूप चोरी होने के बाद जून से अक्तूबर, 2015 के दरमियान बेअदबी की घटनाएँ हुई थीं और बरगाड़ी में पवित्र स्वरूप के अंग मिले थे। इन घटनाओं ने सिख कौम में भारी बेचैनी और रोष पैदा किया।
इन घटनाओं के खि़लाफ़ अक्तूबर, 2015 में बड़े स्तर पर रोष प्रदर्शन और आंदोलन हुए। इस दौरान पुलिस की तरफ से की गई कार्यवाही में कई व्यक्ति जख़़्मी हुए और दो व्यक्तियों की जान गई थी।
साल 2015 में अकाली दल की सरकार ने बेअदबी मामले की जांच सी.बी.आई. को सौंप दी थी। बेअदबी के मामलों और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ पुलिस कार्यवाही की जांच सम्बन्धी सेवामुक्त जस्टिस ज़ोरा सिंह आयोग नियुक्त किया गया और साल 2016 में एक रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई।
साल 2017 में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद सेवामुक्त जस्टिस ज़ोरा सिंह आयोग की रिपोर्ट बेनतीजा पाई गई और सरकार ने इस मामले की जांच के लिए सेवामुक्त जस्टिस रणजीत सिंह आयोग नियुक्त किया, जिसने साल 2018 में अपनी रिपोर्ट सौंपी।

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